शिकार बना शिकारी
जग्गू चिंपांजी अभी छोटा था। जंगल में वह अपने झुंड के दोस्तों के साथ खेलता, मजे करता, लेकिन वह अपनी माँ के आस-पास ही रहता। माँ भी उसका ख्याल रखती और नजर रखती कि वह खेलते-खेलते इधर-उधर न भटक जाये और किसी शिकारी के हाथ न लग जाये।
दिन बड़े मजे से गुजर रहे थे और जग्गू धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था तथा खेल-खेल में जंगल मे जीने के तौर-तरीके भी सीख रहा था। अचानक एक दिन पास के एक गाँव से कुछ शिकारी आये और हवा में फायरिंग शुरु कर दी। सभी जानवर धबड़ाकर इधर-उधर भागने लगे। किसी को कुछ समझ मे नही आ रहा था। सभी बस अपनी जान बचाने को भाग रहे थे। इसी भाग-दौड़ में भोलू हाथी जो अभी काफी छोटा था, शिकारी के बनाये गड्ढ़े में गिर गया और जग्गू चिंपांजी भी शिकारी के जाल में फँस गया। दोनों खूब चिल्लाये, लेकिन कोई सुनने वाला नही था। सारे जानवर अपनी-अपनी जान बचाकर भाग खड़े हुए थे।
शिकारी दोनो को पिंजड़े में बंद कर के ले गये और सर्कस वालों को बेच दिया। दोनों काफी डरे हुए थे, उन्हे कुछ समझ में नही आ रहा था। वे जंगल जाना चाहते थे, अपनी माँ और दोस्तों के पास। लेकिन उनकी जिंदगी अब बदल चुकी थी। दोनो पिंजड़े में कैद रहते। उन्हे अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग दी जाने लगी। गलती होने पर दोनो की खूब पिटाई भी होती और खाने के लिये भी जो थोड़ा बहुत दिया जाता उसी से काम चलाना पड़ता था।
धीरे-धीरे दोनों ने कई सारे करतब सीख लिये। दोनो की ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी। दोनों अब सर्कस में अपने करतब दिखाने लगे। दोनों के हैरतअंगेज करतब देखकर लोग तालियाँ बजाते। बच्चे खुश होते। यह देखकर उन्हे भी थोड़ी खुशी तो होती लेकिन उनका मन सदा जंगल की ओर ही लगा रहता। वो आजाद घूमना चाहते थे जंगल में अपने दोस्तो के साथ। यहाँ दिन भर तीन-तीन, चार-चार शो करने के बाद वो काफी थक जाते और खाने को भी कुछ खास नही मिलता। जंगल मे तो खाने की भरमार थी। वो सोचते कि उनके दोस्त लोग कितने खुशनसीब हैं। वो जंगल में कितने मजे कर रहे होंगे।
इधर ये लोग, एक शहर से दूसरे शहर, दूसरे से तीसरे, तीसरे से चौथे, ऐसे हरेक दूसरे या तीसरे महीने शहर बदल-बदल कर और लगातार शो कर कर वो काफी थक चुके थे। बहुत सारे सिनेमा घर खुल जाने से सर्कस देखने में लोगों की दिलचस्पी भी अब काफी कम हो गयी थी, इसलिये सर्कस की कमाई भी धीरे-धीरे काफी कम होने लगी थी। पैसे की कमी के कारण, अब सर्कस का मालिक भोलू और जग्गू की देख-भाल भी ठीक ढ़ंग से नही कर पा रहा था। उनके रख-रखाव और खाने-पीने पे ज्यादा खर्च नही कर पा रहा था। कई साल बीत गये। दोनों अब बड़े हो गये थे, भोलू के तो दोनों बड़े वाले दाँत भी निकल आये थे। दोनों के खाने की खुराक भी बढ़ती जा रही थी, लेकिन उन्हे उतना खाना नही मिल पा रहा था। वे कमजोर होते जा रहे थे।
उधर दिन-ब-दिन सर्कस की कमाई और भी कम होती जा रही थी और खर्च बढ़ते जा रहे थे। सर्कस के मालिक के लिये अब इसे चला पाना मुश्किल होता जा रहा था। उधर सरकार की तरफ से भी जानवरों से सर्कस में काम कराने को लेकर सख्ती बढ़ती ही जा रही थी।
परेशान हो कर अंत मे एक दिन सर्कस मालिक ने सर्कस को बंद करने का निर्णय किया। भोलू और जग्गू को पास के एक जंगल में छोडं दिया गया। उनकी तो मानो जैसे लाँट्री लग गयी हो। दोनों बड़े खुश थे। ऐसा लग रहा था मानो उन्हे नई जिंदगी मिल गयी हो। बात सही भी थी। अब दोनों आजाद थे। वो आजादी से घूम-फिर सकते थे। अपनी मर्जी से खा-पी सकते थे। परंतु राह अभी उतनी आसान नही थी। कोई भी झुंड उन्हे अपने में शामिल करने को तैयार नही था। सब उन्हे शक की निगाह से देखते थे। वो आजाद तो थे लेकिन उनका कोई दोस्त नही था। वे फिर से अकेले और उदास थे। अब वो न तो सर्कस के ही रहे और न ही जंगल के। कई दिन ऐसे ही बीत गये। कई बार उन्होने नये दोस्त बनाने की कोशिश की। नये-नये करतब भी दिखाये जो उन्होने सर्कस में सीखे थे, परंतु सभी जानवर उनपर और भी शक करने लगे।
अचानक एक दिन फिर से कुछ वैसी ही घटना घटी। कुछ शिकारी हाथ में बंदूक और जाल लिये, जीप में बैठकर, हवा में फायरिंग करते हुए तेजी से वहाँ आये। सारे जानवरो में अफरा-तफरी मच गयी। सभी इधर-उधर भागने लगे। इसी भाग-दौड़ में जम्बो हाथी शिकारी के बनाये गड्ढे में फँस गया। कई और जानवर भी शिकारी के जाल में फँस गये। सभी घबड़ाये हुए थे। जग्गू और भोलू जरा भी नही हिले, मानो सालों पहले वाली घटना ठीक उनके सामने हू-ब-हू चल रही हो। लेकिन अब वो इंसानो के बीच काफी साल रह कर आये थे। इंसान, मोटरगाड़ी, बंदूक इन सभी चीजों से परिचित थे। जग्गू तो बंदूक भी चलाना जानता था। वह सर्कस में एयरगन से बैलून पर निशाना लगाने का शो भी करता था। उसका निशाना काफी पक्का था। वे दोनो बिल्कुल भी नही घबड़ाये।
जैसे ही शिकारी जीप से उतरे, जग्गू ने छुपकर झट से जीप में पड़ी बंदूकों में से एक बंदूक उठा ली। उधर भोलू भी काफी तेज आवाज में चिंघाड़ा। शिकारी जब तक कुछ समझ पाते, जग्गू ने हवा में गोली चलाई। शिकारियों को कुछ समझ में नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है? उन्हे अपने आँखो पर विश्वास नही हो पा रहा था। तभी जग्गू ने एक-दो गोली शिकारियों के तरफ भी चला दी। सभी शिकारी जान बचाकर जीप की ओर भागे और जीप स्टार्ट करके सीधे जंगल के बाहर भाग खड़े हुए।
सभी जानवर दूर से ये सारा नजारा देख रहे थे। भोलू ने जम्बो हाथी को गड्ढे से बाहर निकाला। जग्गू ने जाल में फँसे जानवरों को छुड़ाया। इतनी देर में सभी फिर से वहाँ ईकट्ठे हो गये थे। सभी ने भोलू और जग्गू को गले लगा लिया। जग्गू और भोलू भी काफी खुश थे। उन्हे काफी सारे दोस्त मिल गये और उन्होने फिर किसी भोलू और जग्गू को पिंजड़े में बंद होने तथा अपने दोस्तो से अलग होने से बचा लिया।